रंगलीला – पियूष ‘जयंत’ अरोरा
कविता संकलन – कविताएँ वो होती हैं जो दिल को छु कर निकल जाएं, जिन्हे पढ़ कर ह्रदय के तार झंकृत हो जाये, सोए एहसास जाग उठे – यद्यपि शब्दों का इस्तेमाल वही होता है, पर कविताएँ कम ही शब्दों में मन को लुभा लेती हैं. सच्चे दिल से लिखी गई कविता मानव मन से एक मधुर सम्बन्ध बना लेती हैं, कभी घबराए दिल को ढांढस बंधाती हैं कभी दुखी ह्रदय को सांत्वना देती हैं तो कभी मित्र बन कर सलाह देती हैं. कभी कभी तो ये जीवन साथी बन कर हाथ तक थाम लेती हैं. अच्छी कविताएँ अंतरमन में हमेशा के लिए याद रह जाती हैं और अगर कभी कोई कविता की पंक्तिया भूल जाएं तो ऐसा प्रतीत होता है की कोई अपना सगा बिछड़ गया हो.
यहाँ अपने अद्भुत काव्य संकलन रंगलीला में कवि ‘जयंत’ ने कभी शुभचिंतक बन कर हमारे सेना के भाइयों का मनोबल बढ़ाया है, कभी प्रेमी बन कर ह्रदय को लुभाने की कोशिश की है और कभी मार्ग दर्शक बन कर सही दिशा दिखने का प्रयास किया है. अपनी ‘शब्द’ कविता में जैसे ‘जयंत’ जी ने थोड़े ही शब्दों में सारा संसार समेट लिया है. कुछ ही शब्दों में जैसे सब कुछ बयान कर दिया है.
पहली कविता ‘बचपन की वो कागज़ की कश्ती’ में हर पाठक अपनी बचपन की यादों में पहुँच जाता है और खुशियो के सागर में गोते लगाने लगता है.
हर इंसान का बचपन उसके जीवन का सबसे अधिक महत्वपूर्ण और संवेदनशील पहलु होता है. शुरुआत में ही इस कविता के ज़रिये कवि ने पाठकों को ऐसा महसूस कराया है जैसे बरसो की सूखी, तपती ज़मीं पर किसी ने बरखा की ठंडी फुहार बरसा दी हो.
अपनी एक कविता ‘इश्क़’ में, जैसे ‘जयंत’ जी ने इश्क़ के पूरे मायने ही बदल दिए हैं. वो कहते हैं की अपनी प्रियतमा से किया गया प्रेम ही इश्क़ नहीं है, यहाँ उन्हों नें इश्क़ की परिभाषा ही बदल डाली है. वो कहते हैं की किसी काम को करने का जूनून, कुछ कर दिखाने का ज़ज़्बा ही और रूहानियत की खोज ही सही मायनो में इश्क़ है.
‘रंगलीला’ कविता पढ़ कर ऐसा प्रतीत होता है मानो लम्बी यात्रा करते हुए थके हारे, भूखे प्यासे यात्री को किसी ने प्यार से हांथ पकड़ कर वृक्ष की ठंडी छाँव में बिठा दिया हो. कवि की ये पंक्तिया – ‘आज तक वो पगली शहादत समझ ना पायी थी…उम्मीद के रंग से फिर अपनी मांग सजाई थी…’ पढ़ कर हर पाठक की आँखे बरबस गीली हो जाएँगी.
एक और कविता में अत्यंत मनभावन तरीके से काम शब्दों में दिल्ली की सर्दियों का वर्णन किया गया है. इसे पढ़ कर पाठक का मन दिल्ली जा के वहाँ की सर्दियों का लुत्फ़ उठाने के लिए ललक उठता है.
अपनी अंतिम कविता ‘You Were There’ में कवि ‘जयंत’ ने भारतीय जीवन शैली, किसी परिवार में बुज़ुर्गो एवं दादा-दादी नाना-नानी, की क्या अहमियत है, इससे परिचय कराया है. उन्हों ने अपनी ही ‘grandmother’ के निश्छल प्यार का उदाहरण देते हुए कहा है की एक मासूम बच्चे के जीवन में उसकी ‘grandmother’ के आस पास रहने की कितनी एहम भूमिका है, ये एक मासूम बच्चा ही समझ सकता है. हर बच्चे का कोमल मन प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अपने ‘grandparents’ के संगत में रह के अपने आप को सुरक्षित महसूस करता है.
अंत में कुछ ही शब्दों में ‘जयंत’ जी की रंगलीला के बारे में इतना ही कहना काफी है कि इस कठिनतम एवं संघर्षमय जीवन की यात्रा में इन सुखद कविताओं के संकलन को पढ़ कर ऐसा आभास हुआ जैसे जीवन के मरुस्थल जैसे अनंत सफर के बीच किसी नें ठन्डे झील में नाव की सैर करा दी हो.
कविताओं को पढ़ कर ह्रदय को हमेशा के लिए जैसे कभी ना मिटने वाली सुकून की अनुभूति हो गई. इन कविताओं के हर शब्द जैसे पत्थरों की तरह वायुमंडल से टकरा कर वापस दिल पर आ कर एक गहरी अमिट छाप छोड़ जाता है.
‘जयंत’ लिखतें है ‘नजरिया में’ ‘ना खुशियो की बहार ना ग़मो के दरिया है ज़िन्दगी और कुछ नहीं बस अपना अपना नजरिया है’. इन पंक्तियों पर दाद देने को जी चाहता है. चंद शब्दों में जैसे जीवन के सारे पहलु उभर कर सिमट से गए हैं.
और अंत में, ‘जयंत’ जी की कविता ‘विचारधारा’ के लिए दो शब्द कहना चाहूंगी. इस कविता के माध्यम से कवि ने आज की मानव जीवन शैली की त्रुटियाँ चाहे अनचाहे उजागर कर दी हैं. राजनीतिज्ञों एवं उनकी अपना उल्लू सीधा करने वाली राजनीती की चालों पर करारा प्रहार किया है और बात इतने दिलचस्प तरीके से कही गई है की पाठक वाह वाह कर उठेंगे. मैं यही कहना चाहूंगी की इन कविताओं के संकलन को ना पढ़ना जैसे जीवन के एक अत्यंत सुखद अनुभूति से वंचित रह जाना होगा.